अनुमंडल बगहा पदाधिकारी डॉ. अनुपमा कुमारी ने सरकारी अस्पतालों में लोगों को बेहतर स्वास्थ लाभ दिलाने के लिए जन-जागरूकता चलाने का शुरू किया है , जिसकी काफी सराहना हो रही है |
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अनुमंडल बगहा पदाधिकारी का जन जागरूकता अभियान |
👉बगहा अनुमंडलीय अस्पताल में 32 चिकित्सकों का पद है, जिसमें 16 की नियुक्ति, कार्यरत सिर्फ 12 जबकि 4 ने अभी तक नहीं किया ड्यूटी ज्वाइन
बगहा। अनुमंडल बगहा पदाधिकारी डॉ. अनुपमा कुमारी ने सरकारी अस्पतालों में लोगों को बेहतर स्वास्थ लाभ दिलाने के लिए जन-जागरूकता चलाने का शुरू किया है , जिसकी काफी सराहना हो रही है। वो सोमवार की देर शाम मीडिया को अपने सभागार में बुलाकर उक्त सन्दर्भ में बतायी।
उन्होंने मीडिया से कहा कि पिछले दिनों भैरोगंज की स्वास्थ विभाग के छापेमारी दौरान यह बात उभरकर आयी है कि ग्रामीण महिलाओं को झोला छाप डाक्टर बहला फुसलाकर गर्भाशय को अपव्यय बतलाकर आप्रेशन कर शरीर से बाहर निकाल दे रहें हैं, जबकि महिलाओं के शरीर में गर्भाशय का रहना अतिआवश्यक होता है।
उन्होंने यह भी बतलाया कि अनुमंडलीय अस्पताल बगहा या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में सरकार के द्वारा चिकित्सा सुबिधा उपलब्ध कराई जा रही है। लोगों को अपने इलाज के लिए इन अस्पतालों में जाकर अपना इलाज करने की जरूरत है। इस दौरान कोई चिकित्सक मरीज को अगर रेफर कर रहा है, या चिकित्सा करने से इन्कार कर रहा है, तो लोगों को चिकित्सक से पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद ही कहीं दूसरी जगह अन्यत्र जाएं ।
फर्जी क्लिनिकों में भोले भाले महिला मरीजों के गर्भाशय का करने लगे आपरेशन, पैसे की लालच में मानवता को ताक पर
बता दें की कि बगहा अनुमंडल क्षेत्र में आये दिन फर्जी क्लिनिकों में भोले भाले महिला मरीजों के गर्भाशय में थोड़ी बहुत समस्या की शिकायत रहने पर भी झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा मरीज को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी बता कर पैसे की लालच में मानवता को ताक पर रख 30 से 35 वर्ष के कम उम्र में गर्भाशय की ऑपरेशन कर गर्भाशय निकाल दिया जाता है, ऐसे में मरीजों को जीवनभर कमर, पैर, सिर में दर्द की शिकायत झेलने की संभावना बन जाती है, जबकि आधुनिक मेडिकल रिसर्च में गर्भाशय जैसी समस्याओं का 90 प्रतिशत इलाज दवा से ठीक हो जाता है। सिर्फ 10 प्रतिशत मरीजों का ही जटिल समस्या बनती है, जिसका ऑपरेशन से इलाज किया जाता है।
बिहार में 50 प्रतिशत स्थायी चिकित्सकों के पद रिक्त, युवा डॉक्टर प्राइवेट सेक्टर की ओर चले
वहीं दूसरी तरफ मरीजों के इलाज के लिए बिहार के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है। नये डॉक्टरों की शिकायत है कि प्रतिवर्ष नियमित रूप से डॉक्टरों की बहाली नहीं हो रही है। दूसरी ओर, आइएमए का मानना है कि नियुक्ति की जटिल प्रक्रिया से आजिज होकर युवा डॉक्टर प्राइवेट सेक्टर की ओर चले जा रहे हैं। राज्य के सरकारी अस्पतालों में स्थायी चिकित्सकों के कुल 12 हजार 895 पद स्वीकृत हैं। स्थायी चिकित्सकों के कुल पदों में 6 हजार 330 पदों पर ही चिकित्सक कार्यरत हैं, अब भी 50 प्रतिशत स्थायी चिकित्सकों के पद रिक्त पड़े हुए हैं।
इसी प्रकार से सरकारी अस्पतालों में संविदा वाले 4751 पद स्वीकृत हैं, जिस पर 3030 पदों पर चिकित्सक कार्यरत हैं। संविदा वाले 36 प्रतिशत पद रिक्त हो चुके हैं, ऐसे में पुरे बिहार में जितना चिकित्सकों का पद है, उसमें 50 प्रतिशत अब भी खाली है। बताया जाता है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला अस्पताल तक ओपीडी और इमरजेंसी चलाने के लिए बिहार में चिकित्सकों की कमी है।
बगहा क्षेत्र की जनसंख्या तकरीबन 20 लाख पहुंची , फिर भी अस्पताल में 32 चिकित्सकों का पद
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार बगहा अनुमंडलीय अस्पताल में 32 चिकित्सकों का पद है, जिसमें 16 की नियुक्ति है। जिनमें कार्यरत 12 हैं,जबकि 4 ने अभी तक ड्यूटी ज्वाइन नहीं किया है। बगहा क्षेत्र की जनसंख्या 2011 की जनगणना से 14 लाख है, जो बढ़कर तकरीबन 20 लाख से उपर हो गयी है, ऐसे में 20 लाख लोगों का उपचार बगहा अनुमंडलीय अस्पताल में मौजूद 12 चिकित्सकों पर निर्भर है।
स्वास्थ्य विश्लेषकों की बात मानी जाय तो इतनी कम चिकित्सकों की संख्या में, इतनी बड़ी जनसंख्या का इलाज सम्भव नहीं है। बहरहाल बगहा अनुमंडल पदाधिकारी ने लोगों के स्वास्थ्य लाभ के लिए जन जागरूकता अभियान छेड़ रखा है। देखना यह है कि लोग अस्पताल से कैसे लाभ लें पाते हैं।
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