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Loksabha Election 2024 : बिहार बीजेपी के सामने 70 बनाम 30 का टास्क, लोकसभा चुनाव के लिए 'चाणक्य' ने लगाया बड़ा दांव

Loksabha Election 2024 : केंद्रीय गृह मंत्री और पूर्व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने इसके लिए प्रदेश नेतृत्व को जिम्मेदारी सौंपी है| अब पार्टी अयोध्याधाम यात्रा के जरिए 70 बनाम 30 की नीति अपनाएगी | 

Loksabha Election 2024 : बिहार बीजेपी के सामने 70 बनाम 30 का टास्क, लोकसभा चुनाव के लिए 'चाणक्य' ने लगाया बड़ा दांव
मुख्य बातें:-

अयोध्या धाम यात्रा के जरिए बीजेपी 70 बनाम 30 की राजनीति का समाधान करेगी
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निर्देश पर प्रदेश नेतृत्व ने पहल तेज कर दी 
80 लाख कार्यकर्ता ध्वजवाहक बनकर लक्ष्य प्राप्ति के लिए घर-घर पहुंचेंगे

पटना.| लोकसभा इलेक्शन में विपक्षी खेमे से आगे रहने के लिए बिहार बीजेपी ने लोकसभा चुनाव की तैयारी तेज कर दी है |  पार्टी नेतृत्व की कोशिश बिहार की सभी 40 सीटों पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की जीत सुनिश्चित करने की है| 

इसका अहम आधार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का 5 नवंबर को मुजफ्फरपुर की पताही सभा में दिया गया संदेश है |  दूसरे शब्दों में कहें तो 30 के मुकाबले 70 (करीब 20 फीसदी मुस्लिम और 10 फीसदी यादव) को छोड़कर बाकी वोटरों को आकर्षित करने की पहल करनी होगी | 

50 लाख श्रद्धालु करेंगे रामलला के दर्शन
एडीए के कोर वोटर भी इसी 70 प्रतिशत से आते हैं |  राज्य इकाई ने इस पर प्रगति की |  इस रणनीति का एक अध्याय 50 लाख भक्तों को अयोध्याधाम में श्री रामलला मंदिर के दर्शन की अनुमति देना है।

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी साफ कहते हैं कि बिहार की 70 फीसदी जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आश्वासन पर भरोसा करती है. वह हमारे मुख्य मतदाता भी हैं.' इसी क्रम में पार्टी के रणनीतिकार भी शतरंज की बिसात बिछाते हैं | 

बूथ अध्यक्ष से लेकर पन्ना प्रमुख तक लक्ष्य हासिल करना 
संगठनात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को जोड़ने और सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने की पहल की जा रही है। इसे हासिल करने के लिए बूथ अध्यक्ष से लेकर पन्ना प्रमुख तक सभी को नियुक्त करने का लक्ष्य है | 

साथ ही 80 लाख से अधिक सक्रिय कार्यकर्ताओं को अलग-अलग जिम्मेदारियां दी जाएंगी. 2015 और 2020 के विधान सभा चुनाव तक बीजेपी यादव वोट बैंक को भुनाने की कोशिश कर रही थी| 

अब उसका फोकस यादव को छोड़कर अन्य पिछड़ी जातियों पर है|   खासकर जाति आधारित जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति बदल दी है | 

सम्राट ने जमीनी फीडबैक के आधार पर संगठनात्मक विस्तार को लेकर स्पष्ट संदेश दिया| |  भूपेन्द्र यादव आठ साल तक (2014 से 2022 तक) बिहार राज्य के प्रभारी रहे |  इस दौरान बीजेपी का जोर राजद के कोर वोट यानी यादवों को प्रभावित करने पर था | 

इसी योजना के तहत नित्यानंद राय को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया, लेकिन यादव पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में नहीं थे. पार्टी नेताओं ने पिछले गठबंधन को भी बीजेपी के लिए नुकसानदेह बताया है| 

कुर्मी-कुशवाहा की राजनीतिक संज्ञा लव-कुश 
बिहार में कुर्मी-कुशवाहा का राजनीतिक नाम लव-कुश है|  यह जदयू का मुख्य वोट बैंक है, लेकिन आरसीपी सिंह और उपेन्द्र कुशवाहा के जाने के बाद भाजपा इसमें पैठ बनाने का मौका तलाशने लगी।

वह सम्राट के माध्यम से इस अवसर का उपयोग अपने लाभ के लिए करने के लिए कृतसंकल्प है। पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि सम्राट की ताजपोशी यादववाद का आवरण हटाने और परंपरागत वोटरों के साथ अति पिछड़े वर्ग को लुभाने के लिए की गयी है | 

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