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हर महीने 50 से अधिक नवजात शिशु एनसीयू में भर्ती होते हैं, विशेषज्ञों के जगह ट्रेंड कर रहे इलाज

 पिछले तीन महीने से बक्सर के सदर अस्पताल में नवजात शिशु गहन इकाई बिना चाइल्ड स्पेसलिस्ट और कम संसाधन के साथ चल रही है।
हर महीने 50 से अधिक नवजात शिशु एनसीयू में भर्ती होते हैं, विशेषज्ञों के जगह ट्रेंड कर रहे हैं इलाज

बक्सर| सरकारी अस्पतालों में नवजात शिशु की मृत्यु दर को कम करने के लिए एसएनसीयू की सुविधा दी गई है। पिछले तीन महीने से बक्सर के सदर अस्पताल में नवजात शिशु गहन इकाई बिना चाइल्ड स्पेसलिस्ट और कम संसाधन के साथ चल रही है।

9 मई से एसएनसीयू में बाल विशेषज्ञ डॉ. नागेन्द्र नाथ नहीं हैं। सदर अस्पताल और डुमरांव अनुमंडल अस्पताल में नवजात शिशु गहन इकाई को प्रतिनियुक्ति ट्रेंड चिकित्सक ने संचालित किया है।

SNCU की व्यवस्था चरमरा गई जब शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. नागेंद्र नाथ ने पद छोड़ा। चक्की पीएचसी में पदस्थापित डॉ. रविशंकर श्रीवास्तव को सदर के एसएनसीयू में पदस्थापित किया गया। केवल डॉ. रविशंकर भी सोमवार और गुरुवार को यहां मिलते  हैं। शेष दिनों में केवल ट्रेंड डॉ. राम कुमार गुप्ता अपनी सेवा देते हैं।

दो महीने में 171 नवजात शिशुओं को किया गया एडमिट 


सदर अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार फरवरी में 49 बच्चे बक्सर एनसीयू में भर्ती हुए थे। जिनमें से छह को पुनः भेज दिया गया था। एक बच्चा मर गया। लामा यानी लिव अगेंस्ट मेडिकल एडवाइस था। ऐसे 71 बच्चे अप्रैल में एडमिट हुए। जिसमें एक बच्चे की मौत हो गई। लेकिन एक लामा बन गया। जून में 95 बच्चे भी एडमिट हुए।


90 वर्ष की उम्र में वे स्वस्थ होकर घर चले गए। दो लोग मर गए। जुलाई में 76 बच्चे एडमिट हुए। सदर अस्पताल के प्रबंधक दुष्यंत सिंह ने बताया कि बच्चे के साथ रहने वाले अटेंडेंट को दीदी की रसोई से नाश्ता मुफ्त मिलता है।


चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर के लिए पत्र


सिविल सर्जन डॉ. सुरेश चंद सिन्हा ने बताया कि एसएनसीयू अस्पताल में चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. नागेन्द्र नाथ पदस्थापित थे, जो फिलहाल कार्यरत नहीं हैं। इसके लिए विभाग से चाइल्ड स्पेशलिस्ट की नियुक्ति की मांग की गई है।

सदर अस्पताल और डुमरांव अनुमंडल अस्पताल में ट्रेंड नर्स और प्रतिनियुक्ति से नवजात शिशु गहन इकाई चल रही हैं। सिविल सर्जन ने बताया कि सदर अस्पताल के SNCU में बारह रेडियेंट वार्मर और चार फोटो थेरेपी की मशीन हैं। चिकित्सक की राय के अनुसार इस वार्ड में कमजोर बच्चों को रखा जाता है।


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