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रामरेखा घाट पर दिखे चार मानव शव, नमामि गंगे परियोजना पर अरबों के खर्च पर उठा सवाल ?

 रामरेखा घाट के समीप एक साथ चार मानव शव उपलाते दिखे। जिसको लेकर एक बार फिर बक्सर गंगा में शव की वजह से चर्चा का विषय बन गया !


● सूचना के घंटों बाद भी नगर परिषद ने नहीं की लाशों के निस्तारण की व्यवस्था

बक्सर। पिछले वर्ष से प्रशासन सबक नही ले रही, न लोगों की सोच में बदलाव हो रहा है। पिछले 2020 में कोविड काल के दौरान चौसा में एक साथ कई दर्जन लाशें बहती हुई पाई गई थी, उस वक्त प्रशासन के द्वारा बड़े-बड़े दावे भी किए गए थे। 


प्रशासन का कहना था कि घाटों की निगरानी की जा रही है, साथ ही लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है लेकिन, सच्चाई यह है कि अभी भी ना तो निगरानी जैसी कोई बात देखने को मिल रही है और ना ही लोगों में जागरूकता आ रही हैं। जिसका नतीजा आज पतित पावनी गंगा एक बार फिर मैली होती दिखाई दे रही है। जहा नगर के रामरेखा घाट के समीप एक साथ चार मानव शव उपलाते दिखे। जिसको लेकर एक बार फिर बक्सर गंगा में शव की वजह से चर्चा का विषय बन गया। वर्ष 2020 में जिस प्रकार चौसा में तस्वीरे आयी वही, दृश्य एक बार फिर रामरेखा घाट पर वैसे ही तस्वीर सामने आई हैं।


रामरेखा घाट पर हो रहे घाट निर्माण में मजदूर के तौर पर काम कर रहे हैं सत्येंद्र मेहता तथा अजय कुमार सिंह बताते हैं कि वहां काम कर रहे थे तभी किसी ने यह बताया कि गंगा में लाशें बह रही हैं। जिसके बाद उन्होंने देखा तो एक नहीं चार चार मानव शव गंगा के किनारे बह रही थी। जिनमें तीन पुरुष व एक महिला की शव है।


सूचना के बाद भी घंटों तक नहीं पहुंचे जिम्मेदार लोग 

मामले में नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी प्रेम स्वरूपम से बात की गई तो उन्होंने बताया कि वह पटना में किसी मीटिंग में व्यस्त हैं लेकिन, वह तुरंत इस मामले को लेकर बक्सर में मौजूद नगर के पदाधिकारियों को निर्देश दे रही हैं। लेकिन, कार्यपालक पदाधिकारी के इस कथन का अनुपालन घंटों तक होता नहीं दिखाई दिया। बाहर हाल अपने कार्यकलापों से सदैव चर्चा में रहने वाले नगर परिषद से, इस से ज्यादा कुछ उम्मीद भी नहीं की जा सकती है लेकिन, इन सब के बाद एक बात पूरी तरह साफ है कि गंगा में लाशों का मिलना कहीं ना कहीं पतित-पावनी गंगा की सेहत पर मंडरा रहे एक बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है।

गंगा में शव बहाना अंधविश्वास पर भरोसा

रामरेखा घाट गंगा आरती सेवा ट्रस्ट के पुजारी अमरनाथ पांडेय उर्फ लाला बाबा बताते हैं कि कुछ लोग अंधविश्वास में शवों को गंगा में बहा देते हैं। उनका ऐसा मानना है कि कुष्ठ रोगियों अथवा किसी अन्य प्रकार की बीमारी से मृत लोगों को गंगा में प्रवाहित कर देना चाहिए लेकिन, वह लोग यह नहीं सोचते कि जीवनदायिनी गंगा ऐसा करने से कितनी प्रदूषित हो जाएंगी। लोगों को चाहिए कि यदि वह शवों का अंतिम संस्कार करने में सक्षम नहीं है तो उन्हें कहीं दफन कर दें और अगर उन्हें माता गंगा में आस्था है तो वह गंगाजल की बूंदे ले जाकर वहां अर्पित कर दे लेकिन गंगा में लाशें बहाना कतई उचित नहीं।

खर्च अरबों लेकिन सफाई की बात हवा-हवाई

  सरकार के द्वारा जारी रिपोर्ट पर गौर करें तो हर वर्ष अरबों की राशि गंगा की स्वच्छता के नाम पर खर्च होती है। स्वच्छता के प्रति जागरूकता के लिए रैलियां और सभाएं निकालकर भी लाखों रुपयों का खर्च किया जाता है. पिछले ही दिनों बक्सर के रामरेखा घाट पर सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा संकल्प सभा का आयोजन कर लोगों से गंगा को स्वच्छ बनाए रखने में मदद करने की अपील की गई थी लेकिन, बुधवार को जब गंगा में फिर से लाशें बहती हुई दिखाई दी तो यह साफ हो गया कि जो संकल्प लोगों ने लिया था वह केवल हवा-हवाई ही था● Bihar News Print की यह खबर आपको कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं। खबर टॉपिक को अपना सुझाव दें।

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